अर्थी को बीच रास्ते में क्यों रोका जाता है – एक रहस्यमय और धार्मिक परंपरा

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अर्थी को बीच रास्ते में क्यों रोका जाता है – एक रहस्यमय और धार्मिक परंपरा

भारतवर्ष की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता में अनेक परंपराएं और रीतियाँ ऐसी हैं जो सदियों से चली आ रही हैं। इन परंपराओं का वैज्ञानिक, धार्मिक, तथा सामाजिक दृष्टिकोण से गहरा संबंध होता है। इन्हीं में से एक परंपरा है – अर्थी को बीच रास्ते में रोकना। जब किसी व्यक्ति का निधन होता है और उसकी अंतिम यात्रा निकाली जाती है, तो उस शवयात्रा को कुछ क्षणों के लिए रोका जाता है। यह प्रक्रिया लगभग हर हिंदू समाज में देखी जाती है, विशेषकर उत्तर भारत में। आखिर ऐसा क्यों किया जाता है? इसके पीछे क्या रहस्य है? क्या यह कोई धार्मिक आस्था है या इसका कोई सामाजिक कारण भी है? आइए इस रहस्यमयी परंपरा की गहराई में चलते हैं।

 अर्थी और अंतिम यात्रा का महत्व

हिंदू धर्म में मृत्यु को अंत नहीं माना जाता, बल्कि यह आत्मा की एक यात्रा मानी जाती है – एक जीवन से दूसरे जीवन की ओर। जब किसी व्यक्ति का देहांत होता है, तो उसे सम्मानपूर्वक श्मशान या कब्रिस्तान तक पहुँचाने की परंपरा है जिसे “अंतिम यात्रा” कहा जाता है। इस यात्रा में अर्थी (जिस पर मृतक का शरीर रखा जाता है) को सजाया जाता है, फूल अर्पित किए जाते हैं और राम नाम सत्य है, बोलते हुए लोग उसे श्मशान तक लेकर जाते हैं।

इस यात्रा के दौरान अर्थी को किसी निश्चित स्थान पर कुछ पल के लिए रोका जाता है। यह रुकावट कोई बाधा नहीं बल्कि एक आवश्यक कृत्य है। आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण।

 धार्मिक कारण

 आत्मा को अंतिम विदाई का समय देना

मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति मरता है, तो उसकी आत्मा तुरंत शरीर से अलग नहीं होती। वह कुछ समय तक अपने प्रियजनों और शरीर के आस-पास मंडराती रहती है। जब शव को ले जाया जा रहा होता है, तब आत्मा भी उसके साथ चलती है। रास्ते में अर्थी को रोकने का एक उद्देश्य यह होता है कि आत्मा को यह संदेश दिया जा सके कि अब यह उसका अंतिम पड़ाव है और उसे शांति से आगे की यात्रा के लिए तैयार होना चाहिए।

 पितृलोक की ओर प्रस्थान

धार्मिक मान्यता के अनुसार, मृतक की आत्मा को यमदूत पितृलोक की ओर ले जाते हैं। अर्थी को बीच में रोक कर कुछ मंत्रोच्चारण या प्रार्थना की जाती है जिससे आत्मा को शुभ पथ पर ले जाने की अनुमति मिल सके। यह एक प्रकार की विदाई है जो जीवितों द्वारा मृत आत्मा को दी जाती है।

 पौराणिक मान्यताएँ

 श्रीराम की अंतिम यात्रा

रामायण में यह उल्लेख मिलता है कि जब दशरथ का देहांत हुआ तो उनकी शवयात्रा को कुछ समय के लिए रोका गया क्योंकि श्रीराम उस समय उपस्थित नहीं थे। इस प्रतीक्षा को प्रतीकात्मक रूप से आज भी जीवित रखा गया है कि कहीं कोई प्रियजन अंतिम बार मृतक से मिलने आ सके।

 यमराज और समय की प्रतीक्षा

कुछ मान्यताओं में कहा गया है कि यमराज हर आत्मा को ले जाने के लिए एक विशेष मुहूर्त और समय निर्धारित करते हैं। जब शव को ले जाया जा रहा होता है और अर्थी को रास्ते में रोका जाता है, तो यह प्रतीक्षा उस शुभ समय की होती है जिसमें आत्मा को विदा किया जा सके।

 वैज्ञानिक दृष्टिकोण

 शव को आराम देने की प्रक्रिया

वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो शव को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना श्रमसाध्य कार्य होता है। अर्थी को उठाने वाले लोगों को बीच-बीच में आराम देने के लिए भी इसे रोका जाता है। यह विश्राम का समय होता है ताकि वे दोबारा नए उत्साह के साथ यात्रा जारी रख सकें।

 जीवाणु और संक्रमण को रोकना

प्राचीन समय में जब शव को खुले में ले जाया जाता था, तब संक्रमण का खतरा रहता था। बीच में रोक कर अग्नि या धूप से शव को शुद्ध करने की परंपरा भी थी, जिससे हानिकारक कीटाणु मर जाएं। यह परंपरा कालांतर में धार्मिक स्वरूप में बदल गई।

 सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण

 भावनाओं को समेटने का समय

अर्थी जब निकलती है, तो परिवार के लोग अत्यंत भावुक होते हैं। शव यात्रा के बीच रुकने का एक कारण यह भी है कि परिजनों को थोड़ा और समय मिल सके अंतिम दर्शन और विदाई के लिए। यह एक भावनात्मक जुड़ाव को संतुलित करने की प्रक्रिया होती है।

 अंतिम संस्कार के लिए तैयारी

कभी-कभी अंतिम संस्कार स्थल पर कुछ तैयारियाँ अधूरी होती हैं – जैसे लकड़ियाँ सजाना, पंडित की प्रतीक्षा आदि। ऐसे में रास्ते में शव को कुछ देर रोकने से अंतिम स्थल पर सब कुछ सुचारु रूप से किया जा सकता है।

 प्रतीकात्मक अर्थ

 जीवन की क्षणभंगुरता

रास्ते में शवयात्रा को रोक कर यह संदेश भी दिया जाता है कि जीवन क्षणिक है, और हमें रुक कर सोचने की आवश्यकता है – क्या हम जीवन को सही दिशा में जी रहे हैं? यह ठहराव एक आत्मचिंतन का अवसर है।

 कर्मों की प्रतीक्षा

हिंदू मान्यता के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा के साथ उसके कर्म जाते हैं। यह प्रतीक्षा उन कर्मों की समीक्षा की भी होती है – जैसे एक न्यायालय में अंतिम निर्णय से पहले थोड़ा ठहर कर सोचना।

 क्षेत्रीय विविधताएं

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अर्थी को रोकने की विधियाँ अलग-अलग हो सकती हैं:

  • उत्तर भारत: शवयात्रा में कुछ स्थानों पर जल छिड़का जाता है और भूमि को प्रणाम किया जाता है।

  • मध्य भारत: यात्रा के बीच में ‘राम नाम सत्य है’ के उच्चारण के साथ ठहराव होता है।

  • गुजरात और राजस्थान: अर्थी के नीचे दीया जलाने की परंपरा होती है जिसे रोक कर किया जाता है।

 आधुनिक युग में यह परंपरा

आजकल शहरी जीवन में जब एंबुलेंस या गाड़ी में शव को श्मशान ले जाया जाता है, तब भी परिजन प्रतीकात्मक रूप से वाहन को एक बार रोकते हैं, विशेष रूप से घर के बाहर या मंदिर के पास। यह पुराने रीति-रिवाज को सम्मान देने की एक आधुनिक शैली है।

 क्या यह परंपरा आवश्यक है?

इसका उत्तर आस्था और भावनाओं से जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिक रूप से यह आवश्यक न भी हो, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से इसका महत्व बहुत बड़ा है। यह एक जीवन के अंत को सम्मानपूर्वक विदाई देने का तरीका है, और इसमें समाज, धर्म, विज्ञान तथा भावना – सबका संगम होता है।

 निष्कर्ष

अर्थी को बीच रास्ते में रोकना एक गहरी सोच, श्रद्धा, विज्ञान और सामाजिक भावना से जुड़ी परंपरा है। यह केवल एक क्रिया नहीं बल्कि एक संकल्प है – आत्मा को अंतिम विदाई देने का, जीवन की नश्वरता को स्वीकार करने का, और एक यात्रा से दूसरी यात्रा की ओर अग्रसर आत्मा को सम्मानपूर्वक विदा करने का। चाहे आप इसे धार्मिक दृष्टिकोण से देखें या सामाजिक या मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह परंपरा हमारी संस्कृति की गहराई को दर्शाती है।

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