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माँ काली की इस मूर्ति को बंद क्यों रखा जाता है। ……………………
इटावा जिले में स्थित लखना कस्बे का कालिका देवी मंदिर अपनी ऐतिहासिकता, धार्मिक महत्व और सामाजिक एकजुटता के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर लगभग 160 वर्ष पुराना है और हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है इस मंदिर सभी धर्म के लोग माता के दर्शनों के लिए आते है
मंदिर का इतिहास
कहते है की माँ की इस मूर्ति का स्वरुप बहुत ही विकराल है जिसे हर नहीं देख सकता सकता मंदिर के पुजारी कपिल दोहरे के अनुसार, लखना के राजा जसवंत राय देवी मां की पूजा के लिए यमुना पार स्थित कंधेसीरघार मंदिर जाते थे। बरसात के समय यमुना का जलस्तर बढ़ जाने के कारण वहां जाना कठिन हो जाता था। एक दिन राजा साहब को स्वप्न में देवी मां ने दर्शन दिए और लखना में ही मंदिर स्थापना का निर्देश दिया। इसके पश्चात, राजा जसवंत राय ने 1882 में इस मंदिर का निर्माण करवाया।
मंदिर की विशेषताएं
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मूर्ति की अनुपस्थिति: मंदिर में मां कालिका की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है। कहा जाता है माँ कलिका की मूर्ति का स्वरुप बहुत विकराल है कोई भी माँ के उस रूप को देककर भक्त दर जायेंगे इसलिए केवल मान्यता के आधार पर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। हालांकि, मंदिर परिसर में एक मूर्ति स्थापित है, जिसकी पूजा विशेष अवसरों पर की जाती है।
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आंगन का कच्चा रहना: मंदिर का आंगन आज तक कच्चा है। कहा जाता है कि देवी मां ने स्वप्न में राजा जसवंत राय को निर्देश दिया था कि आंगन को पक्का न करवाया जाए, अन्यथा अनिष्ट हो सकता है। इसी कारण, आंगन को गाय के गोबर से लीपा जाता है।
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दलित पुजारियों की परंपरा: मंदिर में पिछले 200 वर्षों से दलित पुजारी पूजा-अर्चना करवा रहे हैं। यहां सभी जातियों के लोग आते हैं और दलित पुजारियों के माध्यम से पूजा करते हैं, जो सामाजिक समरसता का उदाहरण है。
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सैयद बाबा की मजार: मंदिर परिसर में सैयद बाबा की मजार स्थित है, जहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और मन्नत मांगते हैं।
धार्मिक मान्यताएं
मंदिर में यह मान्यता है कि जो महिलाएं निःसंतान होती हैं, वे यहां आकर मन्नत मांगती हैं और उनकी गोद भर जाती है। मनोकामना पूर्ण होने पर वे अपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी यहां करवाती हैं। इसके अलावा, श्रद्धालु मनोकामना पूर्ण होने पर झंडा चढ़ाने भी आते हैं。 Dainik Bhaskar
नवरात्रि का विशेष महत्व
नवरात्रि के दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। शनिवार के दिन विशेष रूप से भक्तों की लंबी कतारें देखी जाती हैं, जो देवी मां के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा को दर्शाता है。 Dainik Bhaskar
सामाजिक समरसता का प्रतीक
मंदिर में हिन्दू-मुस्लिम एकता का विशेष उदाहरण देखने को मिलता है। यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं और सैयद बाबा की मजार पर कोड़ी, चादर, प्रसाद आदि चढ़ाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। मंदिर के महंत कपिल दोहरे के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना का उद्देश्य ही हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना था।
कैसे जाएं
वाली कलिका मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए, आप निकटतम प्रमुख शहर से सड़क मार्ग द्वारा यात्रा कर सकते हैं। यदि आप सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना चाहते हैं, तो स्थानीय बसें या टैक्सियाँ उपलब्ध हो सकती हैं। यात्रा से पहले स्थानीय परिवहन विकल्पों और मार्गों की जानकारी प्राप्त करना उचित होगा।
निष्कर्ष
लखना का कालिका देवी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सामाजिक समरसता और भाईचारे का प्रतीक भी है। यह मंदिर हमें विभिन्न धर्मों और जातियों के बीच सौहार्द्र और एकता का संदेश देता है, जो आज के समय में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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