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चलिए जानते है काशी विश्वनाथ के बारे में कुछ रोचक तथ्य-
विश्वनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है। ये मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर है. कहा जाता है कि इस मंदिर का दोबारा निर्माण 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था। 1194 ईसवी में मुहम्मद गौरी ने इसे ध्वस्त कर दिया था। परंतु मंदिर का पुन निर्माण करवाया गया लेकिन 1447 ईसवी में इसे एक बार फिर जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। इतिहास के पन्नों में झांकने पर यह ज्ञात होता है कि काशी मंदिर के निर्माण और तोड़ने की घटनाएं 11वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक चलती रही।
औरंगजेब ने कराया मंदिर ध्वस्त-
1585 में राजा टोडरमल की मदद से पंडित नारायण भट्ट ने विश्वनाथ मंदिर का एक बार फिर से निर्माण करवाया लेकिन एक बार फिर 1632 में शाहजंहा ने मंदिर का विध्वंस करने के लिए अपनी सेना भेजी लेकिन सेना अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई। इसके बाद औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 में इस मंदिर को ध्वस्त करा दिया।
1780 में करवाया था मौजूदा मंदिर का फिर से निर्माण
इसके बाद करीब 125 साल तक वहां कोई मंदिर नहीं था। वर्तमान में जो बाबा विश्वनाथ मंदिर स्थित है उसका निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलोग्राम सोना दान दिया था। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास भी आए थे।
मंदिर के पास ही विवादित ज्ञानवापी मस्जिद
मंदिर के साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद है। कहा जाता है कि मस्जिद मंदिर की ही मूल जगह पर बनाई गई है। ज्ञानवापी मस्जिद को मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर बनवाया था। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कथा है जिसका उल्लेख मशहूर इतिहासकार डॉक्टर विश्वंभर नाथ पांडेय की पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति, मुगल विरासत: औरंगजेब के फ़रमान” में मिलता है।