एक ऐसा मंदिर जहाँ न घंटी बजाई जाती है न ही ताली जानिए। ………..

एक ऐसा मंदिर जहाँ न घंटी बजाई जाती है न ही ताली जानिए। ………..

विश्व में केवल बांके बिहारी जी का एक ऐसा मंदिर है जहां घंटी नहीं है, और ना ही यहां घंटी बजाई जाती है। यहां श्री बिहारी जी छोटे से बालक के रूप में दर्शन दे रहे हैं। मंदिर में ठाकुर जी इसी रूप में विराजमान है।

 

वैसे तो हमारे ठाकुर जी बिरज के महाराजा हैं पर 7 साल के बालक के रूप में स्वामी श्री हरिदास जी से लाड़ लड़ाया करते थे। श्री बांके बिहारी जी के सामने ताली नहीं बजाई जाती क्योंकि श्री बांके बिहारी जी बाल  स्वरुप में सेवा की जाती है। ताली एवं घंटी से ठाकुर कई बार चौंक जाते थे इसलिए यहां यह परंपरा बंद कर दी गई।

ताली नहीं बजाने का एक कारण

धर्म शास्त्रों के ज्ञाता डॉ. आर अवस्थी ने जानकारी दी कि ताली नहीं बजाने का एक कारण और भी है कि ताली बजने का अर्थ है भोग पूरा लग गया है, अब आचमन कर लो। पर यहां भक्त बिहारी जी को पेड़े का भोग हर समय लगाते मिलेंगे मंदिर में, वहीं हमारे ठाकुर बिहारी जी लड्डू खूब खाते हैं।

 

भक्त के जीवन में चमत्कार करते रहते हैं

बिहारी जी नटखट हैं और छोटे से बालक भी हैं इसलिए भक्त के जीवन में बिहारी जी चमत्कार करते रहते हैं। बिहारी जी अपने भक्त को ऐसे देखते हैं जैसे घर पर कोई मेहमान आये तो बच्चा टकटकी लगा कर देखता है, वहीं अचानक से नजर हटाकर दूसरी ओर देखने लगते हैं। ऐसा अनुभव प्रत्येक उस भक्त का होगा जो मंदिर में कहीं भी खड़ा हो। ठाकुर उस पर नजरें लगाये मिलेंगे। लेकिन भक्त देखेगा लाड़ लड़ायेगा तो तुरंत दूसरी ओर देखने लगेंगे।

 

बांके बिहारीजी के धाम की खासियत –

वृंदावन अनादिकाल से है। माना जाता है कुंज गलियां इसकी प्राण हैं। वृंदावन की गलियों में आम दिनों में भी सुबह और शाम के वक्त अच्छी खासी भीड़ होती है। प्रह्लाद बल्लभ बताते हैं कि गर्ग संहिता के अनुसार वृंदावन अनादिकाल से है। महाप्रलय के बाद जब भगवान बाल गोपाल नवीन सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं, तो इसका शुभारंभ इसी वृंदावन से होता है। गर्ग संहिता के मुताबिक, श्रीमन् नारायण की उत्पत्ति श्रीजी के मन से हुई है और श्रीजी वृंदावन के बिहारीजी के हृदय में विराजमान रहती हैं।

 

कुंज गलियों का हर किनारा यमुना तट तक

मतलब ये ऐसी गलियां हैं, जिनमें एक छोर से निकलें तो दूसरे छोर पर पहुंच जाएं। कुंज गलियों का हर किनारा शहर से निकलता है, यमुना तट पर मिलता है। इसी तरह एक गली का दूसरा सिरा तीसरी गली से मिलता है और फिर वह सभी मंदिर तक पहुंच जाता है।

गलियों में प्राचीन मंदिरों के दर्शन

इस बसावट की सबसे बड़ी बात है, वृंदावन छोटा शहर है, यहां आने वाले लाखों तीर्थ यात्री अपने आप से घूमते-फिरते रहते हैं। छोटी कुंज गलियों से फायदा यह है कि तीर्थ यात्री अपने एक गली से दूसरी गली में पहुंच जाते हैं और आसानी से सभी प्राचीन मंदिरों के दर्शन हो जाते हैं।

5 शतक पहले संगीत साधना से बिहारीजी प्रकट हुए

प्रह्लाद बल्लभ गोस्वामी बताते हैं कि आज से करीब 500 साल पहले स्वामी हरिदास जी ने संगीत की साधना के जरिए इसी श्रीधाम वृंदावन के निधिवन में प्रिया-प्रियतम की जोड़ी को प्रकट किया। यही जोड़ी बाद में उनकी श्यामा-श्याम की प्रार्थना पर एक हो गई, जो आज आम जनमानस को ठाकुर बांके बिहारीजी महाराज के रूप में दर्शन दे रहे हैं।

वृंदावन के हर घर में ठाकुर जी विराजते हैं, सप्त-देवालय भी यहीं है

वृंदावन में करीब साढ़े पांच हजार मंदिर हैं। प्रमुख मंदिरों में कुंज गलियों में घूमते हुए आसानी से दर्शन कर सकते हैं। यहां हर घर में ठाकुरजी विराजते हैं। इनमें सप्त-देवालय (7 मंदिर) गोविंद देव, गोपीनाथ, मदन मोहन मंदिर, राधा दामोदर मंदिर, राधाश्याम सुंदर मंदिर, गोकुलानंद मंदिर, राधारमण मंदिर शामिल हैं। इन मंदिरों की स्थापना वृंदावन में चैतन्य महाप्रभु के शिष्यों ने की थी।

 

जहां नजर दौड़ाओ मंदिर ही मंदिर

हरित्रयी संप्रदाय के बांके बिहारी, राधा वल्लभ, किशोर वन, युगल किशोर मंदिर, अष्ट सखी मंदिर, कात्यायनी मंदिर, रंगजी मंदिर, इस्कॉन टेंपल, प्रेम मंदिर, माता वैष्णो मंदिर शामिल हैं।

 

किसी भी गली में जाओ मंदिर तक ही पहुंचेंगे

बांके बिहारी मंदिर के चारों ओर संकरी कुंज गलियां हैं। आप किसी भी गली में प्रवेश करके मंदिर तक पहुंच सकते हैं। कुंज गलियां, बृज की धरोहर हैं, ठाकुरजी यहां नंगे पांव चले हैं

 

कण-कण भक्तों को खींचता है

प्रह्लाद बल्लभ कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि वृंदावन में भक्त सिर्फ बांके बिहारी दर्शन के लिए आते हैं। यहां का कण-कण भक्तों को खींचता है। यहां की भूमि का आकर्षण है। बिहारी जी के भाई-बंधु और कई अन्य आराध्य प्रभु यहां के साढ़े पांच हजार मंदिरों में विराजमान हैं।

 

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