प्रेमानंद जी महाराज प्रवचन इन लक्षणों के आते ही भगवान मिल जायेंगे। …………..

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 प्रेमानंद जी महाराज प्रवचन इन लक्षणों के आते ही भगवान मिल जायेंगे। 

सद्गुरुदेव प्रेमानंद जी महाराज के अमृतमयी प्रवचन से आज लाखों जनमानस में आत्मसुधार हो रहा है और लोग उनके कहे गए वचनों को अपने जीवन में उतार रहे है I आज उनके आश्रम में हजारों-हजार श्रद्धालु प्रतिदिन उनके दर्शन और सत्संग को सुनने जाते है महाराज जी स्वयं कह रहे है कि इन लक्षणों के आते ही भगवान मिल जायेंगे I इस लेख में उनके द्वारा कहे गये वचनों को अक्षरशः लिखा गया है तो उन्होंने सत्संग में कहे है I

प्रेमानंद जी महाराज प्रवचन-Factdunia.in

सद्गुरुदेव प्रेमानंद जी महाराज कह रहे है कि अर्जुन जी से भगवान कृष्ण कह रहे है यदि इसी जन्म में भगवान की प्राप्ति करनी है, जीवन मुक्त होना है तो

पहला लक्षण यदि हमारा ह्रदय ऐसा होने लगे गुरुकृपा से कि कोई हमें गाली दे-दुःख दे- या अपमान करे और हम अपने ह्रदय को बचा पायें मतलब इतना सहनशील होना है, मतलब सहनशीलता आध्यात्म-मार्ग की ऊंचाई पर चढ़ने के लिए अत्यंत आवश्यक है I ये आने-जाने वाली अनुकूलता-प्रतिकूलता, मान-अपमान, निंदा-स्तुति इनको तू समान भाव से सह जा, अर्थात समता को धारण कर तो जो अध्यात्म की ऊँचाई पर चढ़ना चाहता हो, ह्रदय इतना शांत होना चाहिये कि किसी के भी मृदु या कटु व्यवहार पर हलचल नही होनी चाहिये I जब हमे कोई सम्मान करता है तो एक विकार उत्पन्न होता है और जब कोई अपमान करता है तो एक विकार उत्पन्न होता है, अपमान पर क्रोध विकार आता है और सम्मान पर हर्ष विकार आता है और ये हर्ष भी मद को जागृत कर देता है उपासना भंग हो जायेगी I सहनशील होते हुए दूसरे का मंगल करने की भावना I

दूसरा लक्षण एक श्वास भी प्रभु से विमुख नही जानी चाहिये इसी जन्म में जीवन मुक्त हो जायेगा I त्रिभुवन की राज लक्ष्मी देने पर भी जो भगवान के नाम का एक पल भी विस्मरण नही करता वो महा भागवत है I जिन विषयों को शास्त्रों ने विधि रूप में वर्णन किया है अपने अधिकारानुसार – प्राण पोषण, जीवन-यापन, धर्म की भावना को पूर्ण करने के लिए उन्ही विषयों का सेवन करे और जिनका निषेध किया गया है उनका त्याग करे तो वह वैराग्य स्थिति को प्राप्त हो जायेगा I

राग- राग से ही अपराध बनते है और रागरहित होकर धर्म पूर्वक विषयों का सेवन करना वो मोक्ष पदवी को प्रदान करने वाला बनता है I

विरक्ति- सम्पूर्ण जगत के एक साथ मिलकर भोग आ जाये और हमारे चित्त को छोभ न पंहुचा पाए उसे विरक्ति कहते है वैराग्यवान I

मानशून्यता- जबतक उपासक में मान प्राप्ति की आशा रहती है तब तक वो निर्द्वन्द नही हो पता है तब तक वो अमृत पद का अधिकारी नही होता है भगवद पद की प्राप्ति के लिए 15 वें अध्याय में भगवान ने सबसे पहले मान छोड़ने की बात कही है

आशाबंधा- दृढ़ आशा रखो अपने गुरुदेव के चरणों में कि इनके प्रताप से इस जन्म में मेरा काम हो जाये गुरु मिले मतलब भगवान मिले और उत्साह के साथ गुरु ने जो नाम दिया उसका का गान और कीर्तन करो और अपने आराध्यदेव के गुणों की चर्चा करने का नशा हो जाये अपने प्रिया जू , अपने लाल जू , की ही चर्चा होती रहे निरंतर, उनका चिंतन चलता रहे I और समय-2 पर भगवान के तीर्थो में जाना बना रहे I- जय श्री राधा

 

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