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भारत पाकिस्तान युद्ध से पाकिस्तान पर असर
भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष ने एक बार फिर उपमहाद्वीप की स्थिरता को चुनौती में डाल दिया है। अप्रैल 2025 के आतंकी हमले के बाद जो तनाव शुरू हुआ, वह अब सीमित युद्ध के स्वरूप में परिवर्तित हो चुका है। इस लेख में हम विस्तार से पाकिस्तान की स्थिति पर चर्चा करेंगे—सैन्य, कूटनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और जल संकट के संदर्भ में—ताकि आप समझ सकें कि इस संघर्ष ने पाकिस्तान को किस प्रकार से प्रभावित किया है।
1. संघर्ष की पृष्ठभूमि
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई। भारत सरकार ने इस हमले का सीधा आरोप पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा पर लगाया। इसके बाद 7 मई को भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” के अंतर्गत पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए।
भारत के अनुसार, ये हमले “प्रीसिशन स्ट्राइक्स” थे और केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया था। लेकिन पाकिस्तान का कहना है कि इन हमलों में आम नागरिकों की भी मौत हुई, जिससे वहां के नागरिकों में रोष व्याप्त हो गया।
2. पाकिस्तान की सैन्य स्थिति
भारत द्वारा किए गए हवाई हमलों के बाद पाकिस्तान की सेना ने आपात बैठक बुलाई और अपनी एयर डिफेंस व्यवस्था को सतर्क कर दिया। लेकिन भारत ने न केवल आतंकी ठिकानों को, बल्कि पाकिस्तान की एयर डिफेंस यूनिटों को भी निशाना बनाया, जिससे लाहौर और रावलपिंडी की हवाई सुरक्षा कमजोर हो गई।
भारत के S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तान की जवाबी मिसाइलों को रोक दिया। इसके अलावा, भारत ने पाकिस्तान की एयर स्पेस में घुसकर ड्रोन के ज़रिए कई अहम ठिकानों को नुकसान पहुंचाया। इससे पाकिस्तान की सैन्य प्रतिष्ठा पर गहरा असर पड़ा।
इस स्थिति में पाकिस्तान के पास दो विकल्प बचे—या तो पूर्ण युद्ध की ओर बढ़े या अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मध्यस्थता स्वीकार कर संकट को नियंत्रित करे। लेकिन भारत की सैन्य क्षमता और अंतरराष्ट्रीय समर्थन को देखते हुए पाकिस्तान पीछे हटने को मजबूर हुआ।
3. सिंधु जल संधि का निलंबन और जल संकट
भारत ने 23 अप्रैल को सिंधु जल संधि को निलंबित करने की घोषणा की। इस संधि के अंतर्गत भारत पाकिस्तान को सिंधु, चेनाब और झेलम नदियों का एक बड़ा हिस्सा देता है। इस निलंबन के बाद पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत में जल संकट गहराता जा रहा है।
चेनाब नदी का जलस्तर 90% तक गिर चुका है, जिससे किसानों की फसलें सूखने लगी हैं। पाकिस्तान की कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था के लिए यह एक बड़ा झटका है। थर और सिंध क्षेत्रों में पीने के पानी की भारी किल्लत देखी जा रही है। सरकार को टैंकरों के माध्यम से जल वितरण करना पड़ रहा है, जिससे बजटीय बोझ और बढ़ गया है।
4. कूटनीतिक हालात
भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में भारत की शिकायत की, लेकिन वैश्विक मंचों पर भारत को अधिक समर्थन मिला, क्योंकि अधिकतर देश आतंकवाद के विरुद्ध कठोर रुख अपनाने के पक्षधर हैं।
इस दौरान अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की। हालांकि पाकिस्तान को चीन का समर्थन मिलने की संभावना थी, लेकिन इस बार चीन ने तटस्थ रुख अपनाया, क्योंकि उसका भी आतंकवाद को लेकर कठोर रुख है और वह BRICS के माध्यम से भारत के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाना चाहता है।
इस अंतरराष्ट्रीय अलगाव ने पाकिस्तान की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया है।
5. आंतरिक अस्थिरता
पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में नागरिकों ने युद्ध विरोधी प्रदर्शन किए। लोगों ने सेना और सरकार की नीति पर सवाल उठाया—“क्या हमें आतंकियों के लिए बार-बार युद्ध झेलना पड़ेगा?” वहीं दूसरी ओर कट्टरपंथी संगठनों ने सेना से जवाबी कार्रवाई की मांग करते हुए हिंसक प्रदर्शन किए।
इस दोहरे दबाव में पाकिस्तान की सरकार बुरी तरह फंस गई है। एक ओर उसे जनता को शांति का भरोसा देना है, वहीं सेना के अंदर उठते हुए युद्ध के सुरों को भी संभालना है।
6. आर्थिक स्थिति और गिरती अर्थव्यवस्था
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही संकट में थी। IMF से लिए गए ऋणों की किस्तें बढ़ती जा रही थीं, मुद्रा का मूल्य लगातार गिर रहा था और विदेशी निवेशक पीछे हटने लगे थे। इस संघर्ष ने स्थिति को और खराब कर दिया।
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रुपया और महंगाई: युद्ध की आशंका के कारण डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया ऐतिहासिक रूप से कमजोर हुआ। महंगाई दर 20% से ऊपर पहुंच गई है, जिससे रोजमर्रा की चीजों की कीमतें आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई हैं।
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कृषि पर असर: जल संकट के कारण रबी फसलों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सिंध और पंजाब में गेहूं, धान और सब्जियों की पैदावार आधी रह गई है।
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बेरोजगारी और उद्योग: ट्रेड रूट्स के बाधित होने से छोटे और मध्यम उद्योगों को भारी नुकसान हुआ है। लाखों मजदूरों की नौकरियाँ चली गई हैं।
7. सामरिक और परमाणु तनाव
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने बयान दिया कि यदि भारत ने और आक्रामकता दिखाई, तो पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों का उपयोग कर सकता है। यह बयान दुनियाभर में चिंता का विषय बना। हालांकि यह बयान ज्यादा प्रभावशाली नहीं माना गया क्योंकि पाकिस्तान की परमाणु नीति पर पहले भी विश्वसनीयता को लेकर संदेह रहा है।
भारत ने संयम दिखाते हुए स्पष्ट कर दिया कि वह आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही कर रहा है, न कि पाकिस्तान के आम नागरिकों के खिलाफ।
8. मीडिया और मनोवैज्ञानिक प्रभाव
पाकिस्तानी मीडिया में भारत विरोधी भावना चरम पर है, लेकिन इस बार आम जनता इतनी जल्दी भावनात्मक रूप से नहीं भड़की। सोशल मीडिया पर लोग शांति की बात कर रहे हैं, जो इस बात का संकेत है कि आम पाकिस्तानी अब युद्ध नहीं, विकास चाहता है।
छोटे बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों पर इस संघर्ष का मानसिक असर देखा जा रहा है। युद्ध की आशंका से स्कूल बंद कर दिए गए हैं, और अस्पतालों में आपातकाल घोषित कर दिया गया है।
9. भविष्य की राह
पाकिस्तान को इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए कई कठोर कदम उठाने होंगे:
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आंतरिक आतंकवाद पर नियंत्रण: जब तक पाकिस्तान अपने ही देश में पल रहे आतंकवादी संगठनों पर लगाम नहीं लगाएगा, तब तक ऐसे संघर्ष बार-बार उत्पन्न होंगे।
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आर्थिक सुधार: पाकिस्तान को अब आत्मनिर्भर बनने की दिशा में ठोस योजनाएँ बनानी होंगी, ताकि उसे बार-बार अंतरराष्ट्रीय सहायता की ज़रूरत न पड़े।
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कूटनीतिक विश्वास अर्जित करना: विश्व समुदाय में अपनी छवि को सुधरने के लिए पाकिस्तान को सहयोग की नीति अपनानी होगी।
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शांति वार्ता की पहल: पाकिस्तान को भारत के साथ शांति वार्ता की गंभीर पहल करनी होगी, जो पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर आधारित हो।
निष्कर्ष
भारत-पाकिस्तान संघर्ष ने पाकिस्तान के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी है। सैन्य दृष्टि से वह पिछड़ता नजर आ रहा है, कूटनीतिक रूप से वह अलग-थलग पड़ गया है, आंतरिक रूप से जनता नाराज है, और आर्थिक दृष्टि से वह कंगाली के कगार पर है।
यह समय पाकिस्तान के लिए आत्ममंथन का है। यदि उसने अब भी अपनी नीतियाँ नहीं बदलीं, तो आने वाले वर्षों में वह और भी गंभीर संकटों में फंस सकता है। केवल शांति, विकास और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की नीति अपनाकर ही पाकिस्तान इस संकट से बच सकता है