कुम्भ मेला बारह सालों बाद ही क्यों आता है?

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कुम्भ मेला बारह सालों बाद ही क्यों आता है?

कुम्भ मेला का सबसे पुराना उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग की यात्रा वृत्तांत में मिलता है, जो 7वीं शताब्दी में भारत आया था। उसने प्रयागराज में विशाल धार्मिक मेला देखा था जहाँ लाखों लोग एकत्रित होते थे। यह आयोजन तब भी 12 वर्षों में एक बार ही होता था।

कुम्भ मेले की कहानी भारतीय पौराणिक कथाओं, विशेष रूप से संस्कृत पुराणों में वर्णित एक अद्भुत और रहस्यमयी घटना से जुड़ी है, जिसे “समुद्र मंथन” कहा जाता है। इस घटना में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया था, और इसी मंथन से अमृत का कलश (कुम्भ) निकला था। कुम्भ मेले की कहानी इसी अमृत कलश और उससे जुड़ी घटनाओं पर आधारित है।

🌊 समुद्र मंथन की कथा:

बहुत समय पहले की बात है, जब देवता और असुर आपस में लगातार युद्ध करते रहते थे। एक समय ऐसा आया जब देवता शक्तिहीन हो गए और असुरों से हारने लगे। तब वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और सहायता मांगी। विष्णु भगवान ने उन्हें सलाह दी कि वे असुरों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करें, जिससे अमृत प्राप्त होगा और उसे पीकर देवता अमर हो जाएंगे।

मंथन के दौरान निकले कई रत्न:

समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले, जिनमें लक्ष्मी, ऐरावत, कौस्तुभ मणि, पारिजात वृक्ष, चंद्रमा, शंख, धन्वंतरि, हलाहल विष (जो शिव ने पिया), और अंत में अमृत कलश भी निकला।

🍯 अमृत कलश की रक्षा:

जब अमृत कलश निकला, तो असुरों ने उसे छीनने का प्रयास किया, जिससे देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया। यह युद्ध 12 दिव्य दिनों (देवताओं के दिन) तक चला, जो मनुष्यों के अनुसार 12 वर्षों के बराबर हैं।

इस युद्ध के दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत को देवताओं को बाँटने का प्रयास किया, लेकिन असुरों को इसका संदेह हो गया और उन्होंने पीछा करना शुरू कर दिया।

📍 अमृत गिरा 4 स्थानों पर:

अमृत कलश को बचाने के लिए जब भगवान विष्णु ने उसे लेकर उड़ान भरी, तो जहाँ-जहाँ अमृत की बूंदें गिरीं, वे स्थान पवित्र बन गए। वे चार स्थान हैं:

  1. प्रयागराज (इलाहाबाद) – गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम

  2. हरिद्वार – गंगा का तट

  3. उज्जैन – क्षिप्रा नदी के किनारे

  4. नासिक – गोदावरी नदी के किनारे

🕉️ कुम्भ मेला क्यों?

इन चार स्थानों पर, जब-जब ग्रहों की स्थिति वैसी बनती है जैसी अमृत कलश के युद्ध के समय थी, वहां कुम्भ मेला आयोजित किया जाता है। यह ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है और हर 12 वर्षों में इन स्थानों पर बारी-बारी से लगता है।

🔱 धार्मिक महत्व:

  • यह माना जाता है कि कुम्भ मेले में स्नान करने से सारे पाप मिट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

  • लाखों साधु-संत, नागा बाबा, अखाड़े, तीर्थयात्री, और श्रद्धालु यहाँ आते हैं।

  • यह सिर्फ धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक और सामाजिक महोत्सव भी होता है।


प्रशासनिक और आधुनिक रूप

आज कुम्भ मेला केवल धार्मिक ही नहीं, एक बहुत बड़ी प्रशासनिक और सांस्कृतिक योजना का भी उदाहरण बन चुका है। करोड़ों लोगों के लिए रहने, खाने, सुरक्षा, यातायात, चिकित्सा और सफाई की व्यवस्था करना एक अत्यंत जटिल कार्य है।

2019 के प्रयागराज कुम्भ को संयुक्त राष्ट्र द्वारा “विश्व की सांस्कृतिक धरोहर” के रूप में मान्यता भी दी गई है।

निष्कर्ष

कुम्भ मेला बारह वर्षों में एक बार ही क्यों आता है, इसका उत्तर केवल पौराणिक कथाओं में नहीं बल्कि गहरे ज्योतिषीय और खगोलीय ज्ञान में छिपा है। यह आयोजन केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति, आस्था, खगोल विज्ञान और सामाजिक समरसता का अद्भुत संगम है।

हर 12 वर्षों में एक बार आने वाला यह आयोजन करोड़ों श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति, मोक्ष और धर्म की अनुभूति कराता है। इस समय को शुभ मानकर स्नान, दान, तप और ध्यान करने से अनेक आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। यही कारण है कि लोग हजारों किलोमीटर दूर से पैदल चलकर भी कुम्भ में भाग लेने आते हैं।


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