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कृष्ण जी ने हथेली पर किसका अंतिम संस्कार किया था?……………………..
भगवान श्रीकृष्ण और उनकी हथेली पर किसका हुआ अंतिम संस्कार
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन अनगिनत लीलाओं से भरा हुआ है। वे केवल एक अवतारी पुरुष ही नहीं, बल्कि साक्षात परमात्मा थे, जिन्होंने धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए इस धरती पर अवतार लिया। उनके जीवन की हर घटना गहरे अर्थ और संदेश से भरी हुई है। उनकी एक ऐसी ही अलौकिक लीला है— जब उन्होंने अपनी हथेली पर किसी का अंतिम संस्कार किया।
किसका अंतिम संस्कार श्रीकृष्ण ने अपनी हथेली पर किया?
यह घटना महाभारत युद्ध के बाद की है, जब पांडवों और कौरवों के बीच हुए भीषण युद्ध के बाद पूरे कुरुक्षेत्र में केवल विध्वंस बचा था। इसी युद्ध के दौरान, जब अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए, तब उनकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थीं। युद्ध समाप्त होने के बाद, जब पांडव राज्यभिषेक की तैयारी कर रहे थे, तब अश्वत्थामा ने बदले की भावना से उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया।
अश्वत्थामा का यह कृत्य अत्यंत घोर और अधार्मिक था क्योंकि वह अभी जन्मे ही नहीं, बल्कि गर्भ में पल रहे एक निर्दोष शिशु की हत्या करना चाहता था। जब उसने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, तब पूरे हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया। उत्तरा घबरा गईं और दौड़कर श्रीकृष्ण के चरणों में गिर गईं। उन्होंने प्रार्थना की, “हे केशव! आप तो सृष्टि के पालनहार हैं, आप सर्वशक्तिमान हैं, आप इस ब्रह्मास्त्र से मेरे गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा करें।”
श्रीकृष्ण को पता था कि ब्रह्मास्त्र को वापस लेना अब संभव नहीं था, लेकिन वे यह भी जानते थे कि धर्म की रक्षा करना उनका कर्तव्य है। इसलिए उन्होंने अपने दिव्य प्रभाव से गर्भ में पल रहे बालक को अपने दिव्य तेज से बचा लिया।
परिक्षित की रक्षा और हथेली पर अंतिम संस्कार
ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से गर्भ में ही शिशु का प्राणांत हो गया था, लेकिन श्रीकृष्ण ने अपने योगबल से उसे पुनः जीवनदान दिया। यही बालक आगे चलकर महाराज परीक्षित के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
लेकिन इसी घटना से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण प्रसंग आता है। कहा जाता है कि जब ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हुई, तब श्रीकृष्ण ने शिशु के मृत शरीर को अपनी हथेली पर रखा और अपने ईश्वरत्व का प्रयोग कर उसे पुनर्जीवित किया। यह एक अनूठा और अद्भुत क्षण था— जब एक मृत शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी हथेली को ही ‘चिता’ बना दिया।
यह प्रसंग हमें कई आध्यात्मिक संदेश देता है:
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ईश्वर की कृपा से असंभव भी संभव हो सकता है – जब पूरे संसार ने मान लिया कि उत्तरा के गर्भ में पल रहा बच्चा मर चुका है, तब श्रीकृष्ण ने अपनी कृपा से उसे पुनः जीवन दिया।
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धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर सदैव उपस्थित रहते हैं :– श्रीकृष्ण केवल एक महान योद्धा और राजनीतिज्ञ नहीं थे, बल्कि वे सच्चे अर्थों में धर्मसंस्थापक थे। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कुरुवंश का वंश नष्ट न हो और अभिमन्यु का पुत्र जीवित रहे।
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ईश्वर भक्तों के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं: – जब उत्तरा रोती हुई श्रीकृष्ण के पास आईं, तो उन्होंने तुरंत अपनी माया और शक्ति से उनके गर्भ की रक्षा की।
क्या यह अंतिम संस्कार था?
अब प्रश्न यह उठता है कि इसे अंतिम संस्कार क्यों कहा जाता है। वास्तव में, किसी मृत शरीर को जलाना ही अंतिम संस्कार नहीं होता। अंतिम संस्कार का अर्थ होता है आत्मा को शरीर के बंधन से मुक्त करना। जब ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से परीक्षित की मृत्यु हुई, तब श्रीकृष्ण ने उसे अपनी हथेली पर रखकर संजीवनी शक्ति दी और उसका पुनर्जन्म कराया। यह पुनर्जन्म केवल शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी हुआ।
श्रीकृष्ण की हथेली का महत्व:-
कहा जाता है कि भगवान की हथेली में समस्त ब्रह्मांड समाया हुआ है। जब वे गीता में कहते हैं कि “सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज”, तब वे अपने भक्तों को यही संदेश देते हैं कि जो कुछ भी है, वह उनकी शरण में ही सुरक्षित है।
उनकी हथेली पर परीक्षित का अंतिम संस्कार होना यह दर्शाता है कि:
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ईश्वर स्वयं सृष्टि के कर्ता और संहारकर्ता हैं
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जो भी उनकी शरण में आता है, वह जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है
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ईश्वर के लिए सब संभव है— वे मृत को भी जीवन दे सकते हैं
निष्कर्ष
श्रीकृष्ण द्वारा अपनी हथेली पर अंतिम संस्कार किया जाना केवल एक चमत्कार नहीं था, बल्कि यह एक दिव्य संदेश था। यह घटना हमें सिखाती है कि जब भी संकट आए, हमें अपने कर्म के साथ-साथ ईश्वर की शरण में भी जाना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए जो लीला की, वह आज भी हमें यह विश्वास दिलाती है कि ईश्वर हमेशा धर्म की रक्षा करते हैं और अधर्म को समाप्त करते हैं।
यह घटना केवल परीक्षित के जीवन की नहीं थी, बल्कि यह समस्त मानवता के लिए एक प्रतीक बन गई कि जब भी संसार में अधर्म बढ़ेगा, तब ईश्वर किसी न किसी रूप में प्रकट होकर धर्म की स्थापना अवश्य करेंगे।